(नागपत्री एक रहस्य-21)
इतने लंबे इंतजार और अनेकों मिन्नतों के बाद आज मैं अपनी कुल देवी के दर्शन करने जा रही थी, जहां एक ओर मेरे मन में श्रद्धा के भाव और दर्शन की अभिलाषा थी, तो वहीं दूसरी ओर दिनकर जी के मन में जिज्ञासा और चमत्कारिक मंदिर के सत्य को जानने के लिए लालसा प्रबल थी।
कभी उनके मन में मां की बताई हुई कहानियों का सत्य जानने की जिज्ञासा जान उठती, और वे मंदिर जाने वाले हर रास्ते, और प्रत्येक स्तंभ को आश्चर्य और उम्मीद की दृष्टि से देखते किसी बालक की तरह...
वे अपनी सासू मां और मां के बीच रुक रुक कर हर विषय पर प्रश्न पूछते??उनकी ऐसी स्थिति देख मास्टर जी मुस्कुरा रहे थे, लेकिन वे यह भी जानते थे कि इस मनोदशा में मंदिर में प्रवेश करना उनके लिए और उनके साथ साथ सभी के लिए कोई बडी परेशानी खड़ी कर सकता है।
क्योंकि यदि चंचल स्वभाव वाले बच्चे की तरह दिनकर जी ने अचानक ही बिना सोचे समझे महज जिज्ञासा वश ,किसी ऐसी वस्तु या जानकारी के अभाव में उनके द्वारा कोई ऐसा व्यवहार किया गया ,जो मंदिर नियमों के खिलाफ है, तो वह सब के लिए देवी प्रकोप का कारण बन सकता है।
दिनकर जी को इसलिए उन्होंने थोड़ा रुक कर समझाइश के तौर पर स्पष्ट चेतावनी देते हुए कहा, कि आपके हर प्रश्नों का जवाब घर चल कर हम दे देंगे, बस इस बात का ख्याल रखिएगा कि हम सृष्टि की उस ताकत के दर्शन हेतु जा रहे हैं, जो सृष्टि का मूल आधार है।
वह अत्यंत सौम्य सुंदर और उस शक्ति से परिपूर्ण है, जो महादेव के कोप के समय में भी उनके साथ रहने वाले और सृष्टि को डिगने ना देने का सामर्थ रखना कोई साधारण बात नहीं।
हमारी यह कुल देवियां शिव परिवार की चहेती तो है ही, साथ ही साथ उस नाग जाति की प्रमुख है, जिनका वर्णन तुमने अब तक सुन रखा है, बस एक बात का विशेष ध्यान रखना कि तुम्हारी थोड़ी सी भी चूक और गलती भले ही वो उत्सुकता वश क्यों ना हुई हो, नाग शक्ति के कोप का कारण बन सकती है।
अब अपने मन में उत्सुकता की जगह श्रद्धा को स्थान दो, और पूर्ण मन से उन आराध्य को प्रणाम कर मनचाहा वर मांगो ,तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी होगी, कहते हुए वे आगे बड़े।
दिनकर जी सम्मान लेकिन फिक्र और क्रोध की भाषा को स्पष्ट तौर पर समझ चुके थे , और उन्हें अपनी गलती का एहसास भी हुआ, इसलिए उन्होंने अपने चंचल मन को स्थिर कर शांतिपूर्वक दर्शन हेतु चलने में ही अपनी भलाई समझी।
वह समय लगभग ग्रीष्म ऋतु के आगमन का था, भक्तों की भीड़ कम ही रहती थी, क्योंकि पूजा की तैयारियों में हम लोगों ने प्रातः वंदन का समय बिता दिया था, और भक्त मंडली प्रथम पूजा निपटा कर अपने-अपने कार्य हेतु लौट आए थे।
जैसे ही मास्टर जी, दिनकर, सावित्री, चंदा और मास्टरनी ने मंदिर के प्रमुख द्वार पर कदम रखा, एक तेज हवा के झोंके ने जैसे संपूर्ण मंदिर का वातावरण बदल दिया, ऐसा लगा जैसे पवन देव इन के आगमन की सूचना दे रहे हैं, पवन के झोंके ने प्रथम पूजन में उड़ते हुए सुगंधित पवन को संपूर्ण वायुमंडल में मिश्रित कर दिया, जिसकी सुगंध से सबका मन प्रफुल्लित और पूर्व आस्थावान हो गया।
सभी मन लगाकर मंदिर में कुल देवी के दर्शन करने हेतु पहुंचे, पुजारी जी ने चंदा और दिनकर जी की और देखकर कहा, बिना संयोग के कुछ भी संभव नहीं है, लेकिन प्रकृति के कार्य रुक जाए, यह असंभव है, जितना मैं समझ सकता हूं, अवश्य ही विशेष कृपा प्राप्त है।
खासकर चंदा तुम्हें और तुम्हारा जीवन एक प्रकार से अनेक संयोंगो से मिलकर बना है, इसी बीच मां की कृपा से एक और सौभाग्य प्राप्त हो जाएगा, मन लगाकर पूजन करो , कहते हुए पुजारी जी ने पूजन प्रारंभ किया।
चंदा का पूरा ध्यान अपने कुल देवी के दर्शन में लीन था, वह मग्न थी, उनकी छवि का अपने मन मस्तिष्क में बैठालने को।
वह सुंदर स्वरूप हल्की नीली आंखें, घुंघराले बाल और चेहरे पर मुस्कान, सिर पर किरिट (मुकुट) अर्ध चंद्रमा की छवि, सब कुछ जैसे वह अपने मन मस्तिष्क में उतार लेना चाहती हो, वह मन ही मन मां से संतान इच्छा प्रसाद जैसे उन्हें स्वयं पुत्री के रूप में प्राप्त करने का वह मांग रही हो।
संपूर्ण पूजन यथावत चलता रहा, वह पूरे समय पूजारी जी की बातों का अनुसरण करती रही, लेकिन फिर भी उसकी नजर जैसे मां के चेहरे से हट नहीं पा रही थी।
पुजारी जी के शंख ध्वनि ने जैसे उसे तनिद्रा से जगाया, और उसका ध्यान वहां उपस्थित अन्य लोगों पर गया, इस प्रकार उन्होंने पूजा अर्चना और परिक्रमा सभी विधि-विधान पूर्ण किए, और तत्पश्चात पुजारी जी ने उन्हें उस सांकेतिक सरोवर के पास ले गया, जिसकी मुख्य झलक कभी कबार ही देखने को मिलती है, जो शायद उस पांच दरवाजों के पीछे छुपी हुई है,
और वहां तक पहुंचने के सभी रास्ते केवल कुछ ही लोग जानते हैं, वे केवल सौभाग्यशाली मनुष्यों के लिए दर्शन के लिए प्रकट होता है, और पुनः विलुप्त हो जाता है, लेकिन इस पर भी सांकेतिक सरोवर भी कोई कम चमत्कारिक नहीं था, उसके दर्शन भी विरले ही होते।
चंदा के मन में ना जाने क्या आया, उन्होंने अपनी कुलदेवी को चुनर अर्पण कर उसके एक सिरे को प्रसाद रूपी पानी में डुबोकर, उस जल का आचमन यह कहते हेतु किया,
हे कुल देवी, यदि सच्ची कृपा हो तो मुझे सेवा का मौका अवश्य देना।
मतलब साफ था कि वह मन में पुत्री की इच्छा कर रही थी, और इस प्रकार वे अपने घर पूजन के पश्चात लौट आए, बात आई गई हो गई।
निश्चित समय पर चंदा को उसकी इच्छा अनुसार चांद सी पुत्री की प्राप्ति हुई, बिल्कुल उसकी कल्पना अनुसार, जिसका नामकरण स्वयं पुजारी जी ने आकर लक्ष्णा के रूप में रखा, उसकी सुंदर नीली आंखें, घुंघराले बाल, और सुन्दर मुस्कान के साथ वह किसी गुड़िया से कम नहीं लगती।
जब उसकी हंसी घर में गूंजती तो, सारा माहौल खुशनुमा हो जाता, दिनकर जी अपनी बेटी लक्षणा से इतना प्यार करते कि वह अपने काम पर जाना ही भूल जाते,
जब वे लक्षणा के साथ खेलते,और दिनकर जी और लक्षणा की प्यारी सी नोकझोंक को चंदा देख मन ही मन मुस्कुराते रहती, देवी का ही चमत्कार है, जो इतनी सुंदर प्यारी बेटी लक्षणा का जन्म उनके घर में हुआ।
क्रमशः.....
madhura
06-Sep-2023 05:18 PM
Nice
Reply